Monday, June 28, 2010
विज्ञापन जगत
विज्ञापनों को देखकर अनायास ही चिट्ठा लिखने का मन हुआ. चलिए कुछ विज्ञापनों पर विचार करते है-
- कोलगेट का विज्ञापन - डेंटिस्ट का सुझाया नंबर वन ब्रांड. अब आम आदमी को तो बस नंबर वन ही सुनाई देता है, उसे क्या पता कि ये कौन से डेंटिस्ट का सुझाया है.
सच तो ये है कि दांतों को साफ करने के लिए किसी दन्त मंजन की जरुरत ही नहीं है.
- बोर्नविटा का विज्ञापन - बोर्नविटा के दो नए प्रकार निकाले गए है- बोर्नविटा++ तथा बोर्नविटा (पांच साल तक के बच्चों के लिए). विज्ञापन में कहा गया है कि एक गिलास बोर्नविटा में है - कैल्शियम, मिनरल्स, आयरन, विटामिन-बी, विटामिन-सी, विटामिन-डी और ना जाने क्या-क्या. पर बताइए एक गिलास बोर्नविटा का मतलब क्या हुआ. सही समझे, एक गिलास बोर्नविटा में दूध भी तो शामिल है. अब दूध में ये सब तत्व तो होंगे ही.
- एक्स गंधहारक का विज्ञापन - जब से ये आये हें, गंधहारक उद्योग के विज्ञापनों में अंग प्रदर्शन करने करने की एक होड़ सी लग गयी है.
- बनियानों के विज्ञापन - बड़े से बड़ा फ़िल्मी सितारा... चाहे वो सलमान हो, अक्षय हो, ह्रितिक हो या अपने सन्नी पाजी हो, बनियानों के विज्ञापन करते दिख जायेगे और इन विज्ञापनों का कोई अर्थ भी समझ में नहीं आता है, चाहे वह टोइंग हो या अपना लक पहन कर चलो हो.
- एरिअल पाउडर का विज्ञापन - किरन बेदी, जिनको कई भारतीय महिलाए अपना आदर्श मानती है, एरिअल पाउडर के विज्ञापन में नज़र आ रही है, और वह भी यह कहती हुई कि एरिअल से धुली हुई १० में से ८ शर्टें उन्हें नयी नज़र आई. कमाल है भई....
ये तो सिर्फ नमूने है, अगर बारिकी से देखा जाये तो ऐसे विज्ञापनों की लाइन लग सकती है.
*सबसे जरुरी बात, हर विज्ञापन के नीचे छोटा सी लाइन लिखी होती है जो नग्न आखों से दिख ही नही सकती, वह है - नियम व शर्ते लागू या फिर इनके निष्कर्ष किसी सेम्पल साइज़ पर आधारित होते है जो शायद उनके नियंत्रण में ही होते हैं.
Wednesday, March 3, 2010
डंप यार्ड दर्शन
पिछ्ले मंगलवार को पुणे के डंप यार्ड (Dump Yard) जाने का अवसर मिला. सामान्य लोगों की भाषा में यह डंप यार्ड वह जगह है जहां पुणे का कचरा फेंका जाता है परन्तु मेरी नज़र में यह वह जगह है जहां कचरा फेंका नही जाता वरन् इकट्ठा किया जाता है. हम अपने अपने घरों से कचरा निकालकर बाहर डाल देते है, वहां से नगर निगम द्वारा यह कचरा उठाकर शहर के बाहर कहीं डाल दिया जाता है. परन्तु क्या हमने कभी सोचा है कि वह कचरा गया कहां, अजी रहा तो वह अपने घर में ही (अगर हम पूरे संसार को अपना घर समझे तो).
जैसे ही वहां पहुंचा, नज़ारा देखकर चौंक गया. दूर दूर जहां तक नज़र जाती थी, कचरे व गन्दगी के फैले विस्तृत पहाड दिखते थे. वहा पर जो लोग काम करते थे वे भी इस माहौल में रहकर चिडचिडे हो गये थे. सुना तो जानकर हैरान रह गया कि यहा रोज़ाना औसतन ४०० टन कचरा डाला जाता है. कचरे को देखा तो जाना कि इसमें ७०% से ज्यादा मात्रा पन्नियों की है जो कि हम बिना सोचे समझे रोजाना धडल्ले से उपयोग में लेते हैं. नगर निगम द्वारा इस कचरे को घरों से डंप यार्ड पहुचाने में हर साल करोडों रुपया खर्च किया जाता है, साथ में परिवहन से जो प्रदूषण होता है वो अलग.
सुनकर खुशी हुई थी कि महाराष्ट्र में सरकार ने पन्नियों के इस्तेमाल को वर्जित कर दिया है परन्तु यह खुशी यहां इस कचरे के ढेर को देखकर काफ़ूर हो गयी क्योंकि इसमें ज्यादातर हिस्सा उन पन्नियों का था जिनका प्रयोग पैकिंग सामग्री के रूप में वाणिज्यिक तौर पर किया जाता है तथा इनके इस्तेमाल पर सरकार ने किसी तरह की कोई रोक नही लगाई है. आजकल सभी वस्तुऐं आकर्षक पैकिंग मे उपलब्ध रहती है, कोई भी वह वस्तुऐं खरीदना पसन्द नही करता जो बाजार में खुली मिल रही हो. आज से १०-१५ साल पहले तक दाल, घी, चीनी, आटा इत्यादि दैनिक उपयोगी वस्तुऐं बाज़ार में खुली मिलती थी तथा हम घर से थैला लेकर खरीदी करने जाते थे परन्तु अब घर से थैला लेकर जाने में हमे शर्म आती है. अगर हम किसी दुकान पर कुछ खरीदने के बाद उससे पन्नी लेने को मना करें तो वह हमें एक अजूबे की तरह देखता है.
जिन पन्नियों पर उनके पुनरुपयोग में लाने का दावा किया किया जाता है (जैसे गुटखा, बिस्कुट, चाय, आटा, पानी की बोतल), उनकी मात्रा उस ढेर में सबसे ज्यादा थी. क्या आपको पता है जिस पानी की बोतल को बनने से लेकर उपभोग होने में १२ दिन ४२ मिनट लगते है वह प्रकृति में ४००० वर्षो तक पडी रहेगी.
प्रकृति ने अपना निर्माण इस ढंग से किया है कि एक का निर्गत (Output) दूसरे का आगत (Input) होता है. उदाहरण के लिए मनुष्य प्रकृति से अपना खाना लेता है तथा पुनः अवशेष प्रकृति में विसर्जित कर देता है जो वापस उर्वरक बनकर पौधों को पोषक तत्व प्रदान करते है और इसी चक्र की वज़ह से प्रकृति में संतुलन रहता है. परन्तु मनुष्य ने जिस पन्नी नामक वस्तु का निर्माण किया है वह किसी के लिए आगत नही है, इसी लिए हम इसे प्राकृतिक रूप से असडनशील कहते है.
चलिए अब बात करते है अपने सिस्टम की. हमारे पूरे सिस्टम की बनावट इस तरह की है कि हमें उसमें खामियाँ नजर न आये. डंप यार्ड को आस पास से लोहे की चादरों से इस तरह ढका गया था कि किसी की नज़र खुद की फैलाई हुई गंदगी पर ना पडे. यहां आम नागरिक का प्रवेश निषेध था तथा अगर आप किसी तरह प्रवेश कर भी गये तो तस्वीर लेने की सख्त मनाही थी. एक स्थान पर कचरे को ज़मीन में दफ़नाकर उपर से सीमेंन्ट की परत कर दी गई थी. इस सीमेंन्ट के उपर मिट्टी बिछाकर वहां एक बगीचा विकसित करने की बात चल रही थी. अरे भई, उपर बगीचा बनाने से नीचे की जगह की गंदगी थोडे ही साफ़ हो जाएगी.
इन सबका सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव पास के उरली वारोली नामक गांव पर पडा है जहां की हर चीज़ (पानी, ज़मीन, हवा आदि) दूषित हो चुकी है. वैसे प्रभाव तो पूरे पर्यावरण पर पडा है क्योंकि मात्र कचरा जमीन में दफ़ना देने से समस्या हल नही होगी.
मुझे इस समस्या का एकमात्र उपाय व्यक्तिगत स्तर पर समस्या को समझना तथा सुलझाना ही लगता है. इसके लिए व्यक्तिगत स्तर पर हमें पन्नियों के उपयोग को कम से कम करना होगा. हो सकता है कि इसको पूर्ण तरीके से सुलझाने में कई दशक लग जाए परन्तु हमें कहीं से तो शुरुआत करनी ही होगी.
मामले की गंभीरता का पूर्ण आभास सिर्फ़ ब्लॉग पडने से नही होगा. इसके लिए जिस भी शहर में आप रहते हैं, आप वहां के डंप यार्ड दर्शन के लिए जरूर जाएँ.
सीमेंट की परत जो कचरे को जमीन में दबाकर बिछा दी गई है
बाहर से लगता है कि सब कुछ ठीक है
Monday, November 23, 2009
लोकप्रियता के लिये होड
महाराष्ट्र के बाद अब मध्यप्रदेश की बारी थी वहा मुख्यमन्त्री शिवराज सिह चॊहान ने भी क्षैत्रीय़वाद की एक मिसाल कायम की. उन्होने एक सार्वजनिक स्थान पर बयान दिया कि जब कारखाना सतना मे लगे तो काम एक बिहारी को क्यो मिले. चॊहान साहब अगर कारखाना सतना मे लगे तो काम पूरे मध्यप्रदेश को भी क्यो मिले. अगर आप पूरे देश को एक ईकाई नही मान सकते तो पूरे मध्यप्रदेश पर यह मेहरबानी क्यो ?
अब कल का ही मामला देखिये, एक मराठी न्यूज चैनल (आईबीएन लोकमत) के मुंबई और पुणे के ऑफिसों पर शुक्रवार को हुए हमले को शिवसेना जायज बताते हुए हमला करने वालों की तरफदारी की है। वही मनसे ने दो दिन पहले बीएसई को उसकी साईट को मराठी मे बनाने की धमकी दी है.
वैसे मेरे एक मराठी मित्र (मेरा रूम पार्टनर) से मेरी इस बात पर चर्चा होती रहती है उसकी एक बात मुझे बहुत जची. उसके अनुसार शायद महाराष्ट्र मे समस्याओ की कमी है इसी वजह से इनको मुद्दे बनाने पडते है.
अगर इनको मुद्दे ही चाहिये तो अपनी सोच को ये सकारात्मक रूप देकर कुछ अछ्छे मुद्दे क्यो नही ढूढते. चलिए हम ही इन्हे कुछ मुद्दे बता देते है -
विदर्भ मे किसानो की आत्माहत्या को लेकर कुछ कीजिए.
गन्ने के समर्थन मूल्य को लेकर कोई आन्दोलन शुरू कीजिए.
गढचिरोली तथा चन्द्रपुर के नक्सलियो से शान्ति के लिए कुछ कदम उठाईये.
अगर और मुद्दे चाहिए तो पूरे देश को देखिये य़कीनन आपको इतनी समस्याऎ मिल जायेगी कि आपके लिए सात जन्मो के मुद्दे आपको तैयार लगेगे.
Tuesday, November 10, 2009
मेरा पहला प्रयास
Monday, September 28, 2009
Last Class of Business Ethics
The musical biography which was presented by Shekhar Sen in our last meeting at business ethics class, took me back into my old school days where I used to read and learn Kabir’s, Rahim’s and Meera’s Bhajan, Dohe and about their life. At that time it was only the matter of marks but in the last class when I was listening about Kabir I realized that they were really great personalities. They sacrifice their whole life for the improvement of society and to fight for wellness of mankind.
In the lecture, I got to know about Kabir’s life. The main thing which I realize was that Kabir never cared about materialistic world. He never thought that what people would think about him, what the people would think about his definition of god and what the people would think about his thinking. He always tries to think according to his belief and more over then that he never tries to force his thoughts on others.
We get to know about the situation of the India when Kabir was born. Castism, Karmkand’s in Religion, Hindu Muslim issue and superstitious things like Nazar Utarna and Tabiz Pahanna was on peak at that time. Kabir denied to follow these things and told that there is no use of Bhakti in any religion if we are fighting from each other. The real Bhakti of god is in the love. Everyone in the world is same. If god didn’t differentiate between human beings than why are the people differentiating between themselves. He opposes the Karmkand’s like Murtipuja, Pashuvadh (Bali) and orthodox practices which were followed by Hindus and Muslims on the name of god.
But now the main question in front of us is that the condition has been improved or get worse at this time. If we see the outer world all around us we find that the condition is getting worse. Most of us are running behind money and tries to earn as much as possible keeping our morality at stake. At that time they were fighting from each other on the name of religion but now the condition is that everyone is fighting from everyone on the name of god, religion, property, cast, money, reputation and so on. On that time the people believes blindly on god and customs but now people are making money on the name of god. A small example to prove this thing is that in several temples there is an arrangement of VIP coupons from which by paying more money people get the Darshan of god very quickly.
So now the question is - Is there a need of another Kabir today?
SONG OF LIFE -
In that session we also saw a video clip. It was a short but very impressive clip. It breaks one myth that meditation is something which is related to concentration. It is not concentration of thought. Meditation is the state of total being. It is the state of intelligence in which one is free from the fear which is generated by mind. It is the state of attentive observation. Harmony brings ecstasy and wisdom is outcome of this energy. Source of wisdom is deep hidden constantly chattering and unstable mind is hindrance. So to be happy and gain wisdom we should concentrate on inner heart.