भई अब तो हम जब भी कोई न्यूज साईट या अखबार को पडते है तो पडने के लिए एक खबर हमेशा मिल जाती है वह है असली मराठी मानुस बनने की हॊड. शिवसेना शुरु से ही इस मुद्दे पर वोट मागती आ रही थी पर अब जब से मनसे अस्तित्व मे आयी है तब से दोनो मे इस मुद्दे को लेकर होड सी लग गयी है. अब विधानसभा वाले मामले को ही ले लीजिए, जो कुछ हुआ वह पूरी मानव जाति के लिए वैसे ही शर्मनाक था बाद मै शिवसेना का बयान था कि मराठी का मुद्दा हमारा था मनसे का नही. वाह भई ! वहा पूरा देश क्षैत्रीय़वाद की आग मे झुलस रहा है और यहा इनको मुद्दे की पडी है !!
महाराष्ट्र के बाद अब मध्यप्रदेश की बारी थी वहा मुख्यमन्त्री शिवराज सिह चॊहान ने भी क्षैत्रीय़वाद की एक मिसाल कायम की. उन्होने एक सार्वजनिक स्थान पर बयान दिया कि जब कारखाना सतना मे लगे तो काम एक बिहारी को क्यो मिले. चॊहान साहब अगर कारखाना सतना मे लगे तो काम पूरे मध्यप्रदेश को भी क्यो मिले. अगर आप पूरे देश को एक ईकाई नही मान सकते तो पूरे मध्यप्रदेश पर यह मेहरबानी क्यो ?
अब कल का ही मामला देखिये, एक मराठी न्यूज चैनल (आईबीएन लोकमत) के मुंबई और पुणे के ऑफिसों पर शुक्रवार को हुए हमले को शिवसेना जायज बताते हुए हमला करने वालों की तरफदारी की है। वही मनसे ने दो दिन पहले बीएसई को उसकी साईट को मराठी मे बनाने की धमकी दी है.
वैसे मेरे एक मराठी मित्र (मेरा रूम पार्टनर) से मेरी इस बात पर चर्चा होती रहती है उसकी एक बात मुझे बहुत जची. उसके अनुसार शायद महाराष्ट्र मे समस्याओ की कमी है इसी वजह से इनको मुद्दे बनाने पडते है.
अगर इनको मुद्दे ही चाहिये तो अपनी सोच को ये सकारात्मक रूप देकर कुछ अछ्छे मुद्दे क्यो नही ढूढते. चलिए हम ही इन्हे कुछ मुद्दे बता देते है -
विदर्भ मे किसानो की आत्माहत्या को लेकर कुछ कीजिए.
गन्ने के समर्थन मूल्य को लेकर कोई आन्दोलन शुरू कीजिए.
गढचिरोली तथा चन्द्रपुर के नक्सलियो से शान्ति के लिए कुछ कदम उठाईये.
अगर और मुद्दे चाहिए तो पूरे देश को देखिये य़कीनन आपको इतनी समस्याऎ मिल जायेगी कि आपके लिए सात जन्मो के मुद्दे आपको तैयार लगेगे.
Monday, November 23, 2009
Tuesday, November 10, 2009
मेरा पहला प्रयास
बहुत समय से ब्लॉग लिखने की इच्छा थी। इसके लिए मेरे बड़े भैय्या मुझे हमेसा से प्रेरित किया करते थे। इच्छा यह भी थी कि ब्लॉग हिन्दी भाषा में ही लिखा जाए परन्तु पहला ब्लॉग अंग्रेजी भाषा में लिखना पड़ा क्योकि यह हमारे महाविद्यालय में दिए गए कार्यभार का एक भाग था तथा इसके प्राप्त अंक मेरे परीक्षा परिणाम में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले थे, अतः अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना मेरी मज़बूरी थी। वैसे मैं हमेशा से हिन्दी माध्यम का छात्र रहा हूँ। मैंने अपनी स्नातक (कला तथा विधि संकाय) की उपाधि हिन्दी माध्यम से ही ली है परन्तु क्या करे स्नातकोत्तर की उपाधि अंग्रेजी माध्यम से लेनी पड़ रही है क्योकि प्रबंधन में यह उपाधि लेने का कोई अन्य माध्यम हमारे राष्ट्र में नही है। अतः हिन्दी भाषा से जुड़े रहने के लिए भी ब्लॉग का सहारा लेना पड़ रहा है। मैं ब्लॉग के माध्यम से मेरे विचार भी पोस्ट करना चाहूँगा जो मैं सामान्यतया आम लोगो के बीच में नही रख पाता हूँ। मैं अपने अध्यापक श्री prathviraj जी घोरपड़े को धन्यवाद् देना चाहूँगा। इन्ही की वजह से मैं अपना ब्लॉग लिखने का सालो पुराना सपना साकार कर पाया। कहते है जब तक कोई काम आपकी मज़बूरी न बने वह शुरू नही हो पाता। मैं अपने बड़े भैय्या श्री नितिन जी बागला को भी धन्यवाद gyapit करना चाहूँगा जिन्होंने मुझे ब्लॉग लिखने की प्रेरणा दी। अभी हिन्दी भाषा का नया खिलाड़ी हूँ अतः अगर कोई भूल-चूक हो तो क्षमा करे तथा मुझे यह गलती इंगित करने का कष्ट करे।
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