Wednesday, March 3, 2010
डंप यार्ड दर्शन
पिछ्ले मंगलवार को पुणे के डंप यार्ड (Dump Yard) जाने का अवसर मिला. सामान्य लोगों की भाषा में यह डंप यार्ड वह जगह है जहां पुणे का कचरा फेंका जाता है परन्तु मेरी नज़र में यह वह जगह है जहां कचरा फेंका नही जाता वरन् इकट्ठा किया जाता है. हम अपने अपने घरों से कचरा निकालकर बाहर डाल देते है, वहां से नगर निगम द्वारा यह कचरा उठाकर शहर के बाहर कहीं डाल दिया जाता है. परन्तु क्या हमने कभी सोचा है कि वह कचरा गया कहां, अजी रहा तो वह अपने घर में ही (अगर हम पूरे संसार को अपना घर समझे तो).
जैसे ही वहां पहुंचा, नज़ारा देखकर चौंक गया. दूर दूर जहां तक नज़र जाती थी, कचरे व गन्दगी के फैले विस्तृत पहाड दिखते थे. वहा पर जो लोग काम करते थे वे भी इस माहौल में रहकर चिडचिडे हो गये थे. सुना तो जानकर हैरान रह गया कि यहा रोज़ाना औसतन ४०० टन कचरा डाला जाता है. कचरे को देखा तो जाना कि इसमें ७०% से ज्यादा मात्रा पन्नियों की है जो कि हम बिना सोचे समझे रोजाना धडल्ले से उपयोग में लेते हैं. नगर निगम द्वारा इस कचरे को घरों से डंप यार्ड पहुचाने में हर साल करोडों रुपया खर्च किया जाता है, साथ में परिवहन से जो प्रदूषण होता है वो अलग.
सुनकर खुशी हुई थी कि महाराष्ट्र में सरकार ने पन्नियों के इस्तेमाल को वर्जित कर दिया है परन्तु यह खुशी यहां इस कचरे के ढेर को देखकर काफ़ूर हो गयी क्योंकि इसमें ज्यादातर हिस्सा उन पन्नियों का था जिनका प्रयोग पैकिंग सामग्री के रूप में वाणिज्यिक तौर पर किया जाता है तथा इनके इस्तेमाल पर सरकार ने किसी तरह की कोई रोक नही लगाई है. आजकल सभी वस्तुऐं आकर्षक पैकिंग मे उपलब्ध रहती है, कोई भी वह वस्तुऐं खरीदना पसन्द नही करता जो बाजार में खुली मिल रही हो. आज से १०-१५ साल पहले तक दाल, घी, चीनी, आटा इत्यादि दैनिक उपयोगी वस्तुऐं बाज़ार में खुली मिलती थी तथा हम घर से थैला लेकर खरीदी करने जाते थे परन्तु अब घर से थैला लेकर जाने में हमे शर्म आती है. अगर हम किसी दुकान पर कुछ खरीदने के बाद उससे पन्नी लेने को मना करें तो वह हमें एक अजूबे की तरह देखता है.
जिन पन्नियों पर उनके पुनरुपयोग में लाने का दावा किया किया जाता है (जैसे गुटखा, बिस्कुट, चाय, आटा, पानी की बोतल), उनकी मात्रा उस ढेर में सबसे ज्यादा थी. क्या आपको पता है जिस पानी की बोतल को बनने से लेकर उपभोग होने में १२ दिन ४२ मिनट लगते है वह प्रकृति में ४००० वर्षो तक पडी रहेगी.
प्रकृति ने अपना निर्माण इस ढंग से किया है कि एक का निर्गत (Output) दूसरे का आगत (Input) होता है. उदाहरण के लिए मनुष्य प्रकृति से अपना खाना लेता है तथा पुनः अवशेष प्रकृति में विसर्जित कर देता है जो वापस उर्वरक बनकर पौधों को पोषक तत्व प्रदान करते है और इसी चक्र की वज़ह से प्रकृति में संतुलन रहता है. परन्तु मनुष्य ने जिस पन्नी नामक वस्तु का निर्माण किया है वह किसी के लिए आगत नही है, इसी लिए हम इसे प्राकृतिक रूप से असडनशील कहते है.
चलिए अब बात करते है अपने सिस्टम की. हमारे पूरे सिस्टम की बनावट इस तरह की है कि हमें उसमें खामियाँ नजर न आये. डंप यार्ड को आस पास से लोहे की चादरों से इस तरह ढका गया था कि किसी की नज़र खुद की फैलाई हुई गंदगी पर ना पडे. यहां आम नागरिक का प्रवेश निषेध था तथा अगर आप किसी तरह प्रवेश कर भी गये तो तस्वीर लेने की सख्त मनाही थी. एक स्थान पर कचरे को ज़मीन में दफ़नाकर उपर से सीमेंन्ट की परत कर दी गई थी. इस सीमेंन्ट के उपर मिट्टी बिछाकर वहां एक बगीचा विकसित करने की बात चल रही थी. अरे भई, उपर बगीचा बनाने से नीचे की जगह की गंदगी थोडे ही साफ़ हो जाएगी.
इन सबका सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव पास के उरली वारोली नामक गांव पर पडा है जहां की हर चीज़ (पानी, ज़मीन, हवा आदि) दूषित हो चुकी है. वैसे प्रभाव तो पूरे पर्यावरण पर पडा है क्योंकि मात्र कचरा जमीन में दफ़ना देने से समस्या हल नही होगी.
मुझे इस समस्या का एकमात्र उपाय व्यक्तिगत स्तर पर समस्या को समझना तथा सुलझाना ही लगता है. इसके लिए व्यक्तिगत स्तर पर हमें पन्नियों के उपयोग को कम से कम करना होगा. हो सकता है कि इसको पूर्ण तरीके से सुलझाने में कई दशक लग जाए परन्तु हमें कहीं से तो शुरुआत करनी ही होगी.
मामले की गंभीरता का पूर्ण आभास सिर्फ़ ब्लॉग पडने से नही होगा. इसके लिए जिस भी शहर में आप रहते हैं, आप वहां के डंप यार्ड दर्शन के लिए जरूर जाएँ.
सीमेंट की परत जो कचरे को जमीन में दबाकर बिछा दी गई है
बाहर से लगता है कि सब कुछ ठीक है
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मामले की गंभीरता का पूर्ण आभास सिर्फ़ ब्लॉग पडने से नही होगा. इसके लिए जिस भी शहर में आप रहते हैं, आप वहां के डंप यार्ड दर्शन के लिए जरूर जाएँ.
ReplyDeletei think instead of gng der! v shud take sum initiatives wich mite b helpful 4 d same! :-)
btw nice article for awareness!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteI think that without knowing the seriousness of the problem nobody will take any action. That is why i requested to visit it.
ReplyDeleteAnyway thanks for ur comments...
bhai I can't type in hindi...I am sorry..
ReplyDeletebut i would like to congratulate you...its a really good work done and I appreciate your thoughts...perhaps i never noticed your deep rooted and logical thinking in class but the blog says it all...my bad..:(
I really appreciate the work and typing in hindi is all the more a good idea...I have read all the blogs and all the comments its really good...
I hope to see some more in near future...I must say I am impressed...shayad saalon me itni hindi padhi hai maine aaj...thanks to you n thanks to Gaurav for posting it on google group so i could access it...i just loved it...keep up your spirit....wish u luck...:)
Thanks Nitin for ur comments.
ReplyDeleteKoshish hai ki tumhari apekshaon par khara utrun.